महाकुंभ मेला हर 12 साल में एक बार आयोजित किया जाता है, और इसका स्थान ग्रहों की विशेष स्थिति के अनुसार तय किया जाता है। इस बार, 13 जनवरी 2025 से प्रयागराज में महाकुंभ मेला शुरू होने जा रहा है, जो करीब 45 दिनों तक चलेगा और जिसमें लगभग 40 करोड़ लोगों के शामिल होने की संभावना है। यह मेला मानव सभ्यता के सबसे प्राचीन और पवित्र उत्सवों में से एक माना जाता है, और इसकी धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता हिंदू धर्म में अत्यंत गहरी है।
प्रयागराज के बारे में प्राचीन ग्रंथों और पौराणिक कथाओं में विस्तृत विवरण मिलता है। इसका सबसे पुराना उल्लेख "प्रयाग महात्म्य" में मिलता है, जो पहली सहस्राब्दी ईसा पूर्व में रचित है। मत्स्य पुराण के कुछ अध्यायों में भी गंगा, यमुना, और सरस्वती की पवित्रता और तीर्थयात्रा की परंपरा का उल्लेख है। महाकुंभ का सटीक आरंभ काल अस्पष्ट है, लेकिन यह मेला प्राचीन काल से मनाया जाता रहा है और भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग बन गया है।
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7वीं शताब्दी के दौरान, चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने सबसे पहले महाकुंभ का ऐतिहासिक उल्लेख किया। अपनी यात्रा में उन्होंने 644 ईस्वी में राजा हर्ष के शासनकाल के दौरान प्रयाग का वर्णन किया, जिसमें उन्होंने इसे एक पवित्र नगर बताया, जहां सैकड़ों हिंदू और बौद्ध मंदिर विद्यमान थे। ह्वेन त्सांग ने संगम पर हिंदू स्नान अनुष्ठानों का भी वर्णन किया, जो आत्मा की शुद्धि के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण माने जाते थे।
महाकुंभ मेले का उल्लेख ऋग्वेद के परिशिष्ट में भी मिलता है, और बौद्ध धर्म के पाली ग्रंथों, जैसे मज्झिम निकाय में भी इसका उल्लेख हुआ है। महाभारत में भी प्रयाग के संगम में स्नान का महत्व बताया गया है। तीर्थयात्रा पर्व में लिखा है कि माघ मास में प्रयाग में स्नान करने से व्यक्ति पापों से मुक्त होकर स्वर्ग को प्राप्त कर सकता है। कुंभ मेला न केवल धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि इसमें सत्य, दान, आत्म-नियंत्रण, और धैर्य जैसे जीवन मूल्यों का भी महत्व है, जो इसे भारतीय आध्यात्मिक परंपरा में विशेष स्थान प्रदान करता है।
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं. ग्लोबल कुम्भ विलेज (thekumbhmelaindia.com) इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)